Tuesday, April 7, 2015

Bhakti Sadhana Sutra - Pujya Sripad Baba


श्री कृष्ण शरणम मम
शब्द सीमा से परे चैतन्य का अखण्ड स्मरण चल रहा है।
अपने अहंकारों को गलाओ और जीवन मे समर्पित दैन्य भाव का उदय करो। कृपा का अनुसंधान वस्तुतः तभी होगा।
परम जीवन प्राण श्री कृष्ण की शरणागति जीवन के शाश्वत अनुभूतियों के वृन्दावन से जागृत होती है।
नाम स्मरण की गति श्वास है और श्वासों की गति ध्यान है।
दीपावली की परम ज्योति जीवन को देदीप्यमान करने को निरंतर आतुर रहती है। अपने मानस में ऐसी ज्योति को प्रकाशित करना, वृन्दावन मे रहना है।
जीवन चेतना की परम चैतन्य भाव परिधि में सदैव कृपा की अनुभूति के लिये व्याकुल हो।
आनंदानुभूति की चेतना जीवन के उषाकाल की अनुभूति है। इस चेतना के वृन्दावन मे जीवन सहज विराम है। इसीसे भावित होकर जीवन को कृपा का द्वार प्राप्त होता है।
मनस मे ध्यान की वृति सदा बनाये रहो। इसके लिये निरंतर जप की अति अवश्यकता है। ध्यान के लिये श्री कृष्ण को हृदय में विराजमान करो।
जीवन को दिव्यता से अनुप्राणित करना है।
अपने गुरु को हृदय से प्रज्ञा से जीवन की आंतरिक चेतना हिमालय जैसी दिव्य आस्था की अनुभूति में सादर देखो।
होली महोत्सव की बेला में कृपा की दिव्यता जीवन में प्रिय चिन्मय वृन्दावन को साकार कर देती है। होली जीवन में भावात्मक रंगोत्सव है। चिन्तन में श्री जी – लाल जी के भावमय अनुभव स्मरण की जीवंत बेला, इस महोत्सव को साकार करने में सक्षम होती है।
श्री कृष्ण जीवनधन प्राण स्पंदन होकर जीवंत वृन्दावन में अवतरित होते हैं।
मानस वृन्दावन कृपा के अनुभव में जिस शाश्वत क्षण से स्पंदन होता है वह है जीवन में कृपा का आंदोलन।
भक्तिपूरित व्याकुलता से श्री कृष्ण विह्वल होना है।
जीवन में आध्यात्मिक वृत्ति का अन्वेषण भावना का विकास संपादित करता है। इस सत्य का भावात्मक दृष्टि से एकात्मबोध करना है।
संवेदना से युक्त जीवन की गहराइयों को चिन्मय वृन्दावन के निवासी श्री जी – श्री ठाकुर जी की लीलानुभूति से सदैव अनुप्राणित करते रहो।
अंतस वृन्दावन के पटल पर हो रही भावमय लीलाये नित्य हैं। इसका साक्षात्कार करने के लिए अपने अहम केन्द्रित वृत्तियों को देश-काल से मुक्त करके नाम स्मरण व लीला चिन्तन के माध्यम से वृन्दावन के मानस में केन्द्रित करना है।
श्री कृष्ण कृपा से हमारे जीवन में उनके नित्य वियोग का अनुभव जागृत हो जाये, जिससे हृदय निहित वृन्दावन जीवन में उद्भासित हो उठे।
जीवन चेतना के सृजन की अमर अनुभूति का उद्बोधन है।
जीवन में आध्यात्मिक बोध की अनुभूति के प्रति जागृत रहने की सतत इच्छा जीव को श्री कृष्ण कृपा की आसक्ति से बांधती है। इस कृपा के लिये व्याकुलता को जागृत करना ही एकमात्र साधना है।
शब्द, मन एवम देशकाल से परे बुद्धि का जहां प्रयोग नहीं हो सकता है एक ऐसी अभिव्यक्ति होती है जो नित्य चिंतन जीवन का वृन्दावन है।
नाम, रूप, लीला, धाम की भावना से मन प्राण को नित्य वृन्दावन के निकट लाने का प्रयत्न करो। व्यक्ति से बड़ा उद्देश्य है। वह उद्देश्य है श्री कृष्ण और उनकी प्राण आल्हादिनी श्री राधा सन्निधि। ये नित्य हैं। इनमें ही अपनी श्रद्धा केन्द्रित करो। व्यक्ति तो देश, काल और पंचभौतिक आवरण से बंधा होने के कारण अनित्य है।
इसीलिए नित्य वृन्दावन की उपासना मे यह मानसिक भावना करनी पड़ती है कि मैं तो उनकी हूँ। वे हमारे प्राणाराध्य हैं। यह चिंतन ही जीवन की आध्यात्मिक चेतना से अनुप्राणित जीवंत वृन्दावन है।
जीवन को निरंतर श्री कृष्ण विरह में संपादित करने पर श्वांस नाम के स्पंदन से जागृत हो उठेगा।
हो क्षण से अक्षुण्ण नवोदित प्रति क्षण जीवन। कालजयी चेतना की साधना हो। आगे बढ़ो जागृति मे चेतना में। स्पंदन प्राणो मे हो शाश्वत की स्मृति। साधना दे कृपा दे।
श्री गंगा का प्रवाह आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहा है। हिमालय अपने हिमाच्छादित सृजन में दिव्यता का स्वरूप लेकर स्थिरता की ओर बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है। तभी तो श्री गीताकार ने “स्थाविरांतम हिमालया” (स्थावरो में मै हिमालय हूँ।) कहा है।
हिमालय के नैसार्गिक तपोभूमि ने मानव को सदा से वृन्दावन चेतना प्रदान की है।
जीवन में शाश्वत रक्षा के बंधन को बांधने के लिये प्रेम कृपा की परम अनुभूति जागृत करना उस परम अभय को प्राप्त कार लेना है।
सांसारिक बंधनों को खोलने के लिये जीवन मे जब जागृति हो जाय तब हृदय उस अपार प्रेम मे बंधने मे समर्थ होगा।
कृपा के स्वभाव की तरह प्रेम अभी और सदैव है। अतः कृपा की चिरंतन धारा के प्रति जागृति होना ही जीवन का उद्देश्य है।
तुम्हें समस्त आध्यात्मिक चेतना की अखण्ड दिव्यता जीवन में सदैव मिलती रहे।

5 comments:

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  2. Hello Sir... Really happy to come across your blog about experiences with genuine saints... One thing I was curious about though... if it's not too personal you could answer... your profile says you have a PhD from JNU... Howcome you got attracted to spiritual life coming from an institution which is broadly left oriented... and thereby doesn't really recognize or value a reality beyond the physical world...?

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  3. Once you come in contact with genuine Saint your preconceived notions and prejudices get burnt. Intellectual leanings do not matter in spirituality. Your truthfulness and transparency however do matter. May know who you are?

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  4. As far as JNU is concerned it always had left and right groups of academicians and students. Both believed and practiced freedom of thought and actions in our days.it has produced elites in every field.

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  5. Please sir, translate this into English,it would be a great help.

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