Wednesday, March 4, 2015

परम पूज्य श्रीपाद बाबा जी महाराज के कुछ संस्मरण




 परम पूज्य श्रीपाद बाबा जी महाराज के कुछ संस्मरण
श्री धनीराम शर्मा, 28/498, गोकुलपुरा, आगरा

 

            परम पूज्य बाबा श्री श्रीपाद जी ब्रज उपासना में गोपी जनों के प्रति भक्तिभाव के कारण उन्हे रसिक मुकुट मणि शब्द से सम्बोधित करते थे। श्री ब्रज के संत, भक्त, कुंड, सरोवर, श्री गिरिराज जी महाराज की तलहटी, ब्रज-रज, ब्रज वासी जन, वृक्ष लता कुंजों से उनका अभूतपूर्व प्रेम था। ब्रज के वन-कुंज तथा श्री यमुना जी का पवित्र किनारा प्रिया-प्रियतम की मधुरतम लीला के स्मरण चिंतन का माध्यम होने के कारण उन्हें अतिशय प्रिय थे। भावमयी पद गायन, संगीत एवं कीर्तन के माध्यम से वे राधाकृष्ण की लीला मे प्रायः प्रवेश कर जाते थे। अतः श्रीपाद जी संगीत गोष्ठियाँ का आयोजन कराते रहते थे। श्रीजी के मंगला आरती में सतना के श्रीप्रकाश द्वारा वायलिन बजाने पर उसकी मोहक ध्वनि सुनकर वह कई बार घंटों  समाधि मे निमग्न रहे

            पूज्य बाबा श्री ब्रज की होली, दान, मान, पनघट, झूलन एवं चोरी-लीला को बड़े स्नेह व लगनपूर्वक देखते सुनते थे। किसी भी प्रांत या शहर में हो परंतु श्री बरसाने की होली-लीला और श्री राधा-अष्टमी पर वे सदैव लाढ़िली जी के महल में उपस्थित रहते थे। उनका कहना था कि श्री राधा-अष्टमी की सभी व्यवस्थाओं को श्री नन्दनन्दन स्वयं अत्यधिक व्यस्त एवं सक्रिय होकर सुचारु रूप से संचालन करते है क्योंकि श्रीमती राधारानी श्री कृष्ण की प्राण वल्लभा हैं। उसी तरह से श्री बरसाने कि होली महोत्सव पर समस्त व्यवस्थाओं का भार श्री राधारानी एवं उनकी उनकी अंतरंग अष्ट सखियों पर रहता है। श्री बाबा जी महाराज इन लीलाओं को ऐतिहासिक नहीं, वरन प्रत्यक्ष मानते थे। रंगीली गली की लट्ठमार होरी में सम्मिलित ब्रज गोपियों में श्री ललिता, विशाखा, रंगदेवी, सुदेवी, चम्पकलता, इंदुलेखा, तुंग विध्या, चित्रा एवं सहचरी मंजरियों के प्रत्यक्ष दर्शन कर उनके चरण- वंदन करते थे।

            इनकी पवित्र, संतसेवी एवं तपस्वी जीवन शैली से प्रभावित होकर समाज के विशिस्ट वर्ग के लोग भी - उच्च कोटि के संत, भक्त, सम्माननीय व्यापारी, शिक्षाविद, अधिकारी, नेता, कतिपय मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति - इनके किसी भी आज्ञापालन सेवा के लिए आभारपूर्वक प्रतीक्षा करते थे। ऐसे बहुत से लोगो को श्री बाबा जी ने ब्रज संस्कृति के रक्षण संबंधित सेवा का अवसर प्रदान किया तथा ब्रजवासियों के न्यायोचित लंबित समस्यायों का यथाशीघ्र निस्तारण कराया। वे अनेक लोगों की जटिल समस्याओं का समाधान अपनी कृपादृष्टि से ही कर दिये और उन्हे भजन साधन एवं सेवा का निर्देश भी दिये इस कारण से अनेक लोग इनको अवतारी महापुरुष मानते थे। बरेली के परम संत श्री भैया जी से ये बहुत स्नेह करते थे।  श्री भैया जी से स्नेह के कारण ही श्री बाबा महाराज ने श्री हरि स्वरूप शर्मा, तत्कालीन कमिशनर (बरेली मण्डल), डाएस सी उपाध्याय कानपुर, श्री एस पी जैसवाल इंजीनियर लखनऊ, श्रीमती शांता झालानी आगरा, श्री बनारसी दास जी खंडेलवाल तथा मुझ पर अत्यंत कृपा की

            मॉस्को यूनिवर्सिटी में हिन्दी विभाग की अध्यक्ष गोलोकवासी सहजनोवा एवं ऑस्ट्रेलिया की राधा दासी इनकी बड़ी ही कृपापात्र सच्ची भक्त शिस्या रही हैं। सुश्री राधा दासी की भक्ति एवं रहनी अद्वितीय रही है। एक बार सहजनोवा का हवाई जहाज से मॉस्को जाने का रिज़र्वेशन था उसी दिन श्री बाबा ने  वृन्दावन से सहजनोवा को श्री ठाकुर जी की प्रतिमा को लेकर श्रीमती झालानी के घर आगरा बुलाया। उनके आगरा आने पर बाबा श्री ठाकुर जी की सेवा प्रक्रिया को विस्तार से समझाने लगे, इस चर्चा में काफी समय बीतने के कारण सहजनोवा का आगरा से दिल्ली पहुँच कर हवाई जहाज को समय पर पकड़ना सर्वथा असंभव हो चुका था। वह बहुत घबरा रही थी परंतु श्री बाबा ने कहा चिंता कर अब श्री ठाकुर जी तेरे साथ है ये ही कुछ व्यवस्था करेंगे। सहजनोवा ने बड़े दुखी मन से बाबा का चरण वंदन कर विदा लिया। बाबा ने एक कार द्वार रात में ही सहजनोवा को दिल्ली भेजने का प्रबंध किया। दिल्ली हवाई अड्डा पहुँचकर सहजनोवा ने टेलीफ़ोन किया कि निर्धारित जहाज कि उड़ान किन्ही कारणों से निरस्त होने के कारण हमारी कुछ ही देर में दूसरे जहाजों में भेजने कि व्यवस्था की गयी है। इस चमत्कार से उनकी बाबा में दृढ़ आस्था हो गयी है। एक बार सहजनोवा का रूस से बाबा के लिए टेलीफोन आया तो बाबा ने उनके श्री ठाकुर जी की भी राजी खुशी भी पूछी। सहजनोवा ने कहा कि श्री ठाकुर जी मेरी एक नहीं सुनते हैं वे अक्सर मॉस्को की व्यस्त सड़कों पर घूमने निकाल जाते हैं। बाबा ने कहा अकेले मत जाने दिया कर साथ ले जाया कर।

                        श्री बाबा ब्रज के भजननिष्ठ संतों की बड़े भाव और मन से सेवा करते थे। श्री वृन्दावन धाम में प्यारी यशोदा मैया रहती थीं जो नित्य संत सेवा के लिए अपने हाथ से चक्की चला कर आटा पीसती और रसोई बनाकर साधुओं को खिलाती थी। इसके अतिरिक्त श्री वृन्दावन की नित्य परिक्रमा लगाकर श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में सोहनी (झाड़ू) सेवा करती थी। उनकी बीमारी की अवस्था में श्रीपाद बाबा ने उन्हें श्री बिहारी जी की बगीची में एक विशेष कक्ष में रख कर भारत के माने हुए डॉक्टरों से इलाज कराया। हरे राम हरे कृष्ण संस्था के संस्थापक श्री मौनी बाबा का आगरा मेडिकल अस्पताल में अपने कृपापात्र डा. श्री बी बी माहेश्वरी जी एवं मेडिकल कॉलेज के प्रिन्सिपल डॉ लाहिरी  के माध्यम से काफी दिनों  तक इलाज कराया। श्री बरसाने के परम संत श्री सचीनन्दन बाबा की चिकित्सा कराई तथा इन सबके लीला में प्रवेश होने के पश्चात काफी धन खर्च करके भंडारे कराए। इन तीनों सेवाओं को मैंने अपनी आँखों देखा था। इनके समक्ष जो कोई भी ब्रजवासी, संत अथवा दुखग्रस्त किसी मांग को लेकर आता तो ये ब्रज अकादमी, जिसकी स्थापना उन्होंने 1970s में की,  के लिए आए हुए धन में से ही भरपूर सहायता कर दिया करते थे। बाबा की रहनी अत्यंत साधारण फकीरों जैसी थी, वे सदैव अधोवस्त्र में बड़ी सादगी से रहते थे। 

           श्री राधाष्टमी और होली महोत्सव पर श्री बरसाने के प्रिया कुंड पर पूर्व राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद की नातिनी श्रीमती सरोज एवं तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वेंकटरमन की बेटी श्रीमती विजया रामचंद्रन, पू. भैयाजी एवं श्री बाबा महाराज द्वारा मिलकर संत सेवा के लिए रसोई सिद्ध करने  (बनानेका दृश्य बड़ा अलौकिक होता था। संत सेवा के पश्चात पू. भैया जी एवं बाबा जी महाराज भक्त परिवार के साथ लताओं में बैठते और वहाँ श्री राधा-माधव की रसमई लीलाओं का भक्तों द्वारा मधुर गायन होता; बक्सर वाले पूज्य मामाजी जनकपुर की कोहवर की अंतरंग लीलाएँ सुनाते इस समय लताओं के बीच ऐसा रस बरसता था कि भक्त श्री नन्द  जी के दर्शनों को मंदिर भी नहीं जा पाते और पूरी रात्रि के आनंद के पश्चात सुबह हो जाती। भावुक माताएँ वहीं पूड़ी, पराँठे, नमकीन, मिठाई चाय ले आती और सभी बिना शौच जाए, बिना मुँह धोये खाने लगते, उस समय नियमों का हठात खुला उल्लंघन होता और साथ-साथ पद कीर्तन भी चलता रहता यह पद "दया सखी या ब्रज में वासी कौन निभायो नियम री" चरितार्थ हो जाता था
            हमलोग श्री प्रेम सरोवर और गहवर वन की कुंजों लताओं में पूरी-पूरी रात प्रिया-प्रियतम के विहार दर्शन की प्रतीक्षा करते हुए विहरण करते थे। लीला के पद सुनते समय बाबा को इतना भाव आता कि वह अचेत हो जाते थे। तब पू. भैया जी श्री श्री राधा नाम सुनाकर उनको जागते संभालते थे। यह सौभाग्य व अवसर श्री बाबा महाराज का ही दिया हुआ था। संसार की दृष्टि से बहुत बड़े-बड़े लोग बाबा के पास भीड़ लगाए रहते थे। परंतु हम तुच्छ लोगों पर पू. बाबा की उनसे बढ़कर कृपा होती थी। हम लोगो से पू. बाबा अंतरंग और रहस्यमय चर्चा भी करते थे जिनका उल्लेख नहीं किया जा सकता। श्रीपाद बाबा की सेवा के लिया बहुत से लोग इंतजार करते और तत्पर रहते थे। परंतु बाबा मंगल करने के उद्देश्य से ही किसीकी सेवा ग्रहण करते थे। बाबा परम वैरागी और त्यागी थे अतः सुंदर से सुंदर और कीमती वस्तुऐं भी  लोगों को दे दिया करते थे।


            पू. श्रीपाद बाबा के श्री मुख से सुने निम्न भक्तिवर्धक  सूत्र अनुसरण करने योग्य है-

  • भगवत प्राप्ति की ललक (चाह) अवश्य होनी चाहिए
  • धाम में साधू संग और भजन सेवा अधिक से अधिक करें
  • ब्रजवासी श्री कृपास्वरूप हैं अतः उनमे आदर भाव हो
  • धाम में रह कर सारी चिंताएँ भूल जाइए
  • श्रद्धालुओं का संग ही सदैव श्रेष्ठ है
  • भक्त वह है जो कभी भी किसी पर शासन नहीं करे वरन सबके अनुशासन में रहे
  • श्री कृष्ण भक्त कभी भी वृद्ध नहीं होता वह लीला गायन श्रवण में सदैव युवक की भांति मस्त होकर नाचता है।
  • भक्त के लिए सदाचार, श्रद्धा एवं साधन आवश्यक है
  • आलस्य और प्रमाद भक्त के शत्रु हैं।
  • भगवान की रुचि में ही अपनी रुचि माने
  • सर्वथा नाम का आश्रय लेना, नाम से बड़ा कोई भी नहीं है।
  • भगवान का कोई भी विधान मंगल से रहित नहीं है।
  • कब तक सुनते रहोगे शास्त्र और महापुरुषों की कथित वाणी को आचरण में लाओ।
  • कृपा के लिए श्री राधा रानी का चिंतन करे।
  • भगवत समर्पित वस्तु ही ग्रहण करो।
  • ब्रज के लता-वृक्ष वांछा कल्प तरु है।
  • जीवन का प्रत्येक क्षण प्रिया प्रियतम के चिंतन में बीते उनकी स्मृति निरंतर बनी रहे।