श्रीपाद बाबा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
31दिसंबर 2022।
भारत और विदेशों में बसे हुए हजारों लोगों के लिए, एक महत्वपूर्ण घटना के साथ 1996 का वर्ष समाप्त हो गया था जिसकी हम केवल कल्पना कर सकते हैं और जो हमारी यादों और इतिहास में अंकित रहेगा। 1997 की पूर्व संध्या पर, हमारे गुरुदेव, जो एक वीतराग संत व उस समय के सबसे प्रसिद्ध रहस्यवादियों में से एक थे, ने अपने नश्वर देह को छोड़ दिया था। मैं आज 26 वर्षों के बाद भी अपने गुरु श्रीपाद बाबा के शारीरिक अनुपस्थित की भावना गहराई से महसूस कर रहा हूं, क्योंकि कई अन्य लोगों के साथ मैं भी दिल्ली के आकाश फार्म हाउस में जहां बाबाजी का देहांत हुआ और वृंदावन में उनकी अंतिम यात्रा के समय उपस्थित था। शारिरिक मृत्यु के कई दिनों पहले से उन्होंने बाहरी गतिविधियों को त्याग दिया था; उन्हें आवश्यक निर्देश देने के अलावा दवा खाने, भोजन या संवाद करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे सदैव एक मुद्रा में बैठे अपनी दिव्य एकाग्रता में खोए रहते थे। एक शंकालु व्यक्ति 30 दिसंबर की रात को यह सोचकर बाबाजी के पास आया की वह किसी गंभीर बीमारी की वजह से अपनी याददाश्त खो चुके हैं। बाबाजी ने उस व्यक्ति को उसके ही आवास के दो फोन नंबर बताकर आश्चर्यचकित कर दिया। वह बाबाजी को वृंदावन ले जाना चाहता था। किंतु बाबाजी जैसे ज्ञानी के लिए दिल्ली व वृंदावन में कोई फर्क नहीं था। सभी भूमि गोपाल की उक्ति को चरितार्थ करते हुए बाबाजी अपने अंतिम दिनों में दिल्ली के एक भक्त रमेश जैन के आकाश फार्म हाउस में ही रहे। और 31दिसंबर 1996 के सुबह 11.30 आस पास वृंदावन और उसके पीठासीन देवता राधा कृष्ण की सूक्ष्म उपस्थित में अपने कृशकाय शरीर को छोड़कर उनके आनंदमय गोलोक लीला में सम्मिलित हो गए। तत्पश्चात बाबाजी के शरीर को ब्रज अकादमी, वृंदावन ले जाया गया, जिसकी स्थापना उन्होंने 1978 में ब्रज के वैभव के पुनः स्थापना के लिए की थी। उनका शरीर आनंद निवास के प्राकृतिक सौरभ से परिपूर्ण प्रांगण में 2.1.1997 की सुबह तक भक्तों के दर्शन के लिए विराजमान रहा। हजारों लोगों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। देशी, विदेशी, हिन्दू,सिक्ख, मुसलमान और ईसाई सभी आये।जब बाबाजी की अंतिम यात्रा निकली, तो कुछ ही सूखी आंखें दिखी। वृंदावन के उस धुंध भरे दिन में बाबाजी के अंतिम संस्कार के जुलूस ने राधे कृष्ण, राम राम सत्य है और हरे कृष्ण महामंत्र का गान किया। शारीरिक बंधन से मुक्ति और परमात्मा से मिलने का जयकारा लगाया। ये शब्द आज और अभी भी मन में गूंज रहा है। यमुना नदी के रास्ते में थोड़े थोड़े समय के लिए रुकते हुए, जुलूस उनकी पसंदीदा संकरी गलियों से गुजरा। भारी मालाओं से लदी पालकी में बैठे बाबाजी के साथ सैकड़ों की संख्या में एक बैंड भक्ति गीत बजा रहा था। पुलिसकर्मियों ने लोगो से विनम्र निवेदन कर गलियों के भीड़ भरे रास्ते को साफ करने का आग्रह किया। जुलूस बाबाजी के सभी पसंदीदा मंदिरों के सामने रुका। पुजारी और निवासी फूल और कपड़े चढ़ाने के लिए घरों से निकले, उनमें से कई अंतिम तीर्थयात्रा में शामिल हुए। शायद शहर की एक चौथाई आबादी और देश विदेश से आए श्रद्धालु यमुना नदी के दोनों किनारों पर जमा हो गए। बाबाजी के शरीर को एक नाव पर पुण्य यमुना नदी के डाउनस्ट्रीम पर, जहां देवरहा बाबा ने अभी कुछ साल पहले जल समाधि ली थी, ले जाया गया। यह बाबाजी का परिचित जल स्थान भी था क्योंकि वह सम्भवतह वहां अक्सर सूर्य देवता को निहारते हुए खड़े होकर ध्यान करते थे। बाबाजी के जलसमाधि के पूर्व पुजारियों के एक समूह ने वैदिक मंत्रों का पाठ किया और देवरहा बाबा के शिष्यों ने अंतिम संस्कार किया। बाबाजी और देवरहा बाबा आत्मा के साथी थे, इसलिए, पवित्र यमुना का इस स्थान ने दोनों को समान रूप से सम्मानित किया। हिंदी अखबारों ने बाबाजी की अंतिम यात्रा का विवरण सुंदर व काव्यात्मक तरीके से प्रकाशित किया। तत्कालीन टेलिविजन चैनलों ने भी यह समाचार अंतिम यात्रा के विजुअल के साथ प्रसारित किया। वृंदावन के जिस पवित्र स्थान में बाबाजी इतने वर्षों तक अपनी गतिविधियों में व्यस्त रहे, वहां से बाबाजी की अंतिम यात्रा उल्लेखनीय और ऐसी महान आत्मा के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि से कम नहीं थी। जुलूस के दौरान ही कई भक्तों को बाबाजी के सहज संदेश प्राप्त हुए। एक महान संत के सान्निध्य में इन अंतिम किलोमीटरों को साझा करना एक सम्मान की बात थी, और कई लोगों ने महसूस किया कि बाबाजी अभी भी अपने रहस्यमय तरीके से उनका मार्गदर्शन कर रहे थे। बाबाजी कई लोगों के लिए एक श्रद्धेय शिक्षक, गुरु, संत और योगी थे, और वे निश्चित रूप से उनके असाधारण व्यक्तित्व और आध्यात्मिक मार्गदर्शन को याद करते हैं।
बाबाजी का इरादा लोगो को Clarion Call या दिव्य बांसुरी वादक श्री कृष्ण का बिना शर्त प्यार और समर्पण का संदेश के प्रति जागृत करना था। बाबाजी ने खुद को सुप्त मन और मस्तिष्क युक्त मानव को इसी संदेश के प्रति जागरूक करने के लिए समर्पित कर दिया। वह लोगो के हृदय में ईश्वर के लिए एक जुनून पैदा करना चाहते थे। बाबाजी उपदेश देने वाले संत नहीं थे, न ही किसी को बेहतर महसूस कराने के लिए मृदुभाषा का इस्तेमाल करते थे। वह एक ऐसे सख्त टास्कमास्टर थे, जो अपने भक्तों व शिष्यों की कमजोरियों व बुराइयों को तब तक उजागर करते रहते थे जब तक वह उनके प्रति सचेत होकर दूर न करें। उन्हें आसान रास्ता अपनाना पसंद नहीं था। उनके साथ या उनके अनुसार कार्य करना अत्यंत कठिन था। क्योंकि वह कार्य को आपकी व्यक्तिगत कमज़ोरी को दूर करने का माध्यम बनाते थे। एक पूर्ण मनुष्य का निर्माण ही उनका मुख्य कार्य था। ऐसा मनुष्य जो ईश्वर और मानवाता के प्रति समर्पित हो जैसे वो खुद थे।
ReplyDeleteHi!
My name is Luke and I have autism and I have a question. I feel like my soul/Atman has two parts that are divided/two. I feel like they will be United when I teach liberation/afterlife but even after liberation they will retain their individuality (being 2) while being in union. Could you pray for me to see if this is true?
सर आपसे बात हो सकती है। 7706842804
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